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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
(ब) धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्यों में मात्र दो पर्यायें हैं - (1) स्वभावअर्थपर्याय, (2) स्वभावव्यञ्जनपर्याय।
प्रश्न 12 – 'आकार' क्या अर्थ है ?
उत्तर - आकार, प्रदेशत्व गुण की व्यञ्जनपर्याय है; इसलिए वह द्रव्य के सम्पूर्ण भाग में होती है। द्रव्य की मात्र बाह्याकृति को आकार नहीं कहा जाता है, किन्तु उसके कद (Volume) को आकार कहा जाता है।
प्रश्न 13 - जीव का आकार किस प्रकार सङ्कोच-विस्तार को प्राप्त होता है, वह दृष्टान्तपूर्वक समझाइये।
उत्तर - (1) भीगे-सूखे चमड़े की भाँति जीव के प्रदेश अपनी शक्ति से सङ्कोच-विस्ताररूप होते हैं।
(2) छोटे-बड़े शरीर प्रमाण सङ्कोच-विस्तार होने पर भी और अपने एक-एक प्रदेश में अपने दूसरे प्रदेश अवगाहना प्राप्त करने पर भी मध्य के आठ-रुचकादिप्रदेश सदैव अचलित रहते हैं; अर्थात् एक-दूसरे में अवगाहना को प्राप्त नहीं होते।
प्रश्न 14 - सिद्धदशा में जीव का आकार कितना और कैसा होता है?
उत्तर - सिद्ध का आकार अन्तिम शरीर से किञ्चित् न्यून और पुरुषाकार होता है। (बृहत् द्रव्यसंग्रह, गाथा 14, 51 तथा टीका)
प्रश्न 15 - समान आकारवाले द्रव्य कौन से हैं ? उत्तर - 1. कालाणु और परमाणु पुद्गल द्रव्य; 2. धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय।