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प्रकरण दूसरा
उत्तर - जो तीन लोक - तीन कालवर्ती सर्व पदार्थों को (अनन्त-धर्मात्मक' सर्व द्रव्य-गुण-पर्यायों को) प्रत्येक समय में यथास्थित परिपूर्णरूप से स्पष्ट और एकसाथ जानता है, उसे केवलज्ञान कहते हैं।
प्रश्न 102 - श्रद्धा गुण (सम्यक्त्व) किसे कहते हैं?
उत्तर - (1) जिस गुण की निर्मलदशा प्रगट होने से अपने शुद्ध आत्मा का प्रतिभास अर्थात् यथार्थ प्रतीति हो, उसे श्रद्धा (सम्यक्त्व) कहते हैं।
(2) सम्यग्दृष्टि को निम्नानुसार प्रतीति होती है - 1. सच्चे देव, गुरु और धर्म में दृढ़ प्रतीति। 2. जीवादि सात तत्त्वों की सच्ची प्रतीति। 3. स्व-पर का श्रद्धान। 4. आत्मश्रद्धान।
उपरोक्त लक्षणों के अविनाभावसहित जो श्रद्धा होती है, वह निश्चयसम्यग्दर्शन है। [इस पर्याय का धारक श्रद्धा सम्यक्त्व गुण है; सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन उसकी पर्यायें हैं।]
प्रश्न 103 - चारित्र गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर - निश्चयसम्यग्दर्शनसहित स्वरूप में विचरण-रमण 1. द्रव्य, गुण, पर्यायों को केवली भगवान जानते हैं, किन्तु उनके अपेक्षित धर्मों
को नहीं जान सकते - ऐसा मानना असत्य है। वे अनन्त को अथवा मात्र अपने आत्मा को ही जानते हैं, किन्तु सर्व को नहीं जानते - ऐसा मानना भी न्याय से विरुद्ध है। केवलज्ञानी भगवान सर्वज्ञ होने से अनेकान्तात्मक प्रत्येक वस्तु को प्रत्यक्ष जानते हैं। केवली के ज्ञान में कुछ भी ज्ञान हुए बिना नहीं रहता।