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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला करना, अपने स्वभाव में अकषाय प्रवृत्ति करना, वह चारित्र है। वह चारित्र, मिथ्यात्व और अस्थिरतारहित अत्यन्त निर्विकार' ऐसा जीव का परिणाम है और ऐसी पर्यायों को धारण करनेवाले गुण को चारित्र गुण कहते हैं। प्रश्न 104 - सुख गुण किसे कहते हैं ? उत्तर - निराकुल आनन्दस्वरूप आत्मा के परिणाम विशेष को सुख कहते हैं और वह पर्याय धारण करनेवाले गुण को सुख गुण कहते हैं। आत्मा में सुख अथवा आनन्द नाम का एक अनादि-अनन्त गुण है। उसका सम्यक् परिणमन होने पर मन, इन्द्रियाँ और उनके विषयों से निरपेक्ष अपने आत्माश्रित निराकुलता लक्षणवाला सुख उत्पन्न होता है। उसके कारणरूप शक्ति, वह सुख गुण है। अनाकुल जिसका लक्षण अर्थात् स्वरूप है - ऐसी सुख शक्ति आत्मा में नित्य है। (समयसार में वर्णित 47 शक्तियों में से) प्रश्न 105 - क्रियावतीशक्ति किसे कहते हैं ? । उत्तर - जीव और पुद्गलद्रव्य में क्रियावतीशक्ति नाम का विशेष गुण है। उसके कारण जीव और पुद्गल को अपनी-अपनी योग्यतानुसार कभी गमन-क्षेत्रान्तर-गतिरूप पर्याय होती है और कभी स्थिरतारूप। [कोई द्रव्य (जीव या पुद्गल) एक-दूसरे को गमन या 1. ऐसे परिणामों को स्वरूप स्थिरता, निश्चलता, वीतरागता, साम्य, धर्म और चारित्र कहते हैं। जब आत्मा के चारित्र गुण की ऐसी शुद्धपर्याय उत्पन्न होती है, तब बाह्य और अभ्यन्तर क्रिया का यथासम्भव ( भूमिकानुसार) निरोध हो जाता है।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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