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प्रकरण दूसरा
(3) पुस्तक के शब्दों को जीव अपने ज्ञान द्वारा व्यवहार से जानता है, वहाँ चश्मा उसमें निमित्तमात्र है।
प्रश्न 66 - ब्राह्मी तेल के प्रयोग से या बादाम आदि खान से बुद्धि बढ़ती है - यह मान्यता ठीक है?
उत्तर - नहीं, क्योंकि एक द्रव्य की शक्ति दूसरे द्रव्य का कोई काम नहीं कर सकती; इसलिए ब्राह्मी तेल आदि का उपयोग करने से या बादाम खाने से बुद्धि बढ़ती है, वह मान्यता झूठी है - ऐसा अगुरुलघुत्व गुण बतलाता है। __ प्रश्न 67 - दूध में मढे के मिलने से दही बन जाता है - यह मान्यता सही है?
उत्तर - नहीं; दूध में मटे के मिलने से दही बनता हो तो पानी में मट्ठा मिलाने से भी दही बनना चाहिए; मढे के और दूध के परमाणु पृथक्-पृथक् हैं। मट्ठारूप पर्यायवाले प्रत्येक परमाणु में भी अगुरुलघुत्व गुण होने से वह दूध के परमाणु में प्रविष्ट नहीं हो सकता, किन्तु द्रव्यत्व गुण के कारण दूधरूप पर्यायवाले परमाणु स्वयं परिवर्तित होकर दहीरूप होते हैं; उसमें मट्ठा तो निमित्तमात्र है। जब दूध के परमाणु अपने क्षणिक उपादान की योग्यता से दहीरूप होने का कार्य करते हैं, उस समय मट्ठा आदि को निमित्तमात्र कहा जाता है।
प्रश्न 68 - इससे सिद्धान्त क्या समझें?
उत्तर - जीव जब स्वयं अपने से स्वसन्मुख होकर अपना स्वरूप सम्यक्प से समझता है, उस समय सम्यग्ज्ञानी का उपदेश आदि निमित्तरूप होता है। - इस प्रकार सर्वत्र उपादान से