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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
ही कार्य होता है; किसी निमित्त की कभी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती, किन्तु निमित्त उस समय होता अवश्य है।
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प्रश्न 69 - आत्मा, मोक्षदशा प्राप्त करे, उस समय तेज में तेज मिल जाता है - ऐसा माना जाए तो क्या दोष आता है ?
उत्तर (1) ऐसा माननेवाले ने अगुरुलघुत्व गुण और अस्तित्व गुण का स्वीकार नहीं किया ।
(2) मोक्ष जानेवाला जीव स्वतन्त्र और सुखी नहीं हुआ, किन्तु उसका नाश हो गया।
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- इस प्रकार जो मोक्षदशा होने पर दूसरे में मिल जाना मानता है, वह अपना भी मोक्ष में नाश मानता है; इसलिए ऐसा धर्म कौन चतुर पुरुष करेगा कि जिसमें स्वयं का विनाश हो जाए ? - अर्थात् कोई नहीं करेगा।
प्रश्न 70 - जीव, संसार में जब एकेन्द्रियपने को प्राप्त हो, तब उसके गुण कम हो जाएँ और जब पञ्चेन्द्रिय को प्राप्त हो, तब बढ़ जाएँ - ऐसा होता है ?
उत्तर - नहीं; क्योंकि -
[1] द्रव्य में अगुरुलघुत्व नामक गुण है, इसलिए उसके किन्हीं गुणों की संख्या और शक्ति कभी कम - अधिक नहीं होती । [2] द्रव्य और गुण तो सदैव सर्व अवस्थाओं में पूर्ण शक्तिवान् ही रहते हैं ।
[3] अपने कारण गुण की वर्तमान पर्याय में ही परिवर्तन [ परिणमन ] होता है ।