SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय वीतरागी जिनेन्द्र परमात्माओं की आत्महितकारी दिव्यध्वनि का प्रवाह परम्परा से हमारे वीतरागी सन्तों, ज्ञानी धर्मात्माओं के माध्यम से इस युग के महान आध्यात्मिक सन्त जीवनशिल्पी पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी को प्राप्त हुआ। गुरुदेवश्री ने अपने प्रचण्ड पुरुषार्थ से स्वयं आत्मानुभव प्राप्त करके अपनी स्वानुभवयुक्त वाणी में जिनवाणी के अनमोल रहस्य हमें समझाये - यह सर्व विदित है। सौराष्ट्र का छोटा-सा गाँव सोनगढ़ आज इस विश्व धरा पर आध्यात्मिक तीर्थ बन गया है और पंचम काल के अन्त तक गुरुदेव श्री की साधनाभूमि के गौरव से गौरवान्वित रहेगा। तीर्थधाम सोनगढ़ में पूज्य गुरुदेवश्री ने प्रतिदिन दो बार प्रवचन एवं एक बार तत्त्वचर्चा के माध्यम से जिस आध्यात्मिक क्रान्ति का शंखनाद किया, उसने मिथ्यात्व के कागजी महल को धराशायी कर दिया है। पूज्य गुरुदेवश्री की स्वानुभवमुदित वाणी में जिनागम के समस्त आत्महितकारी सिद्धान्तों का 45-45 वर्षों तक सिंहनाद हुआ है। आज भी सारा विश्व पूज्य गुरुदेवश्री की दिव्यवाणी से गुंजायमान है। पूज्य गुरुदेवश्री की उपस्थिति में ही सोनगढ़ में प्रतिवर्ष शिक्षणशिविर का आयोजन किया जाता था। जिसमें लघु जैन सिद्धान्त प्रवेशिका एवं मोक्षमार्गप्रकाशक के आधार पर शिक्षण प्रदान किया जाता था। इन पाठ्यक्रमों को पढ़ाते हुए जो-जो उपयोगी प्रश्नोत्तर तैयार हुए, उनका सङ्कलन गुजराती भाषा में जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला के नाम से प्रकाशित
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy