________________ [xvi] उनके ज्ञान में नहीं आता होने से ‘णमो अरिहंताणं' पद का भी सत्य अर्थ वे नहीं जान सकते और आत्मस्वभाव का अज्ञान ही रहता है। वस्तु का स्वभाव ऐसा है कि क्रमबद्धपर्याय होती ही है तथा केवलज्ञानी भी वस्तुस्वरूप के परिपूर्ण ज्ञाता हैं, उनके ज्ञान में सब जानने में आया होने से प्रत्येक द्रव्य की क्रमबद्धपर्याय होती है - ऐसा माने बिना केवलज्ञान का स्वरूप यथार्थरूप से जानने में नहीं आता; इसलिए प्रत्येक द्रव्य की पर्याय क्रमबद्ध होती है - ऐसा जिज्ञासुओं को निर्णय करना चाहिए। (6) अभाव इस प्रश्नोत्तरमाला में अभाव नाम का प्रकरण अलग रखा गया है, उसका अभ्यास करने से ज्ञात होगा कि एक वस्तु का दूसरी वस्तु में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से अभाव होने के कारण दूसरे का कुछ भी नहीं किया जा सकता; और ऐसा निर्णय किये बिना अनादि से चली आ रही परद्रव्य की कर्ताबुद्धि दूर नहीं होती। निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध व्यवहार सम्बन्ध है। निमित्त-नैमित्तिक का परमार्थ अर्थ यह होता है कि - नैमित्तिक ने स्वयं अपने से कार्य किया है. उसमें निमित्त ने कुछ भी नहीं किया है; अर्थात् निमित्त है अवश्य, किन्तु उसने नैमित्तिक का कुछ भी किया नहीं। ऐसा निर्णय न किया जाये तो एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य में अभाव होना वास्तव में माना नहीं कहा जा सकता। इस प्रस्तावना में मुख्य 2 विषयों सम्बन्धी योग्य मार्गदर्शन स्पष्टतापूर्वक संक्षेप में किया गया है। इतना दर्शाने के पश्चात् नम्र आग्रह है कि - मात्र यह प्रश्नोत्तरमाला पढ़ लेने से तत्त्व का यथार्थ ज्ञान नहीं हो सकता; इसलिए उसका यथार्थ ज्ञान करने के लिए