________________ [xv] (5) सर्वज्ञस्वभाव आत्मा की अनेक शक्तियों में से सर्वज्ञत्व और सर्वदर्शित्व ऐसी दो शक्तियों की पूर्ण शुद्धपर्याय होने पर आत्मा सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होता है। उसमें सर्वज्ञस्वभाव द्वारा जगत् के सर्व द्रव्य, उनके अनन्त गुण, अनादि अनन्त पर्यायें, अपेक्षित धर्म और उनके अविभागी प्रतिच्छेद - इन सबको युगपद् एक समय में जानता है और उस ज्ञान में कोई अज्ञात नहीं रहता। इससे सिद्ध होता है कि प्रत्येक द्रव्य की पर्याय क्रमबद्ध होती है, कोई भी पर्याय उलटी-सीधी नहीं होती है। प्रथमानुयोग के शास्त्रों में श्री तीर्थंकर भगवानों ने तथा केवली भगवन्तों ने बहुत जीवों की भूत-भावी पर्यायें स्पष्टरूप से बतलायी हैं तथा अवधिज्ञानी मुनियों ने भी बहुत जीवों की भूत-भावी भवों की वार्ताएँ कही है। इससे प्रत्येक द्रव्य की पर्यायें क्रमबद्ध होती हैं, यह सिद्ध होता है। यदि ऐसा नहीं माना जाए तो वे सभी शास्त्र मिथ्या सिद्ध होंगे। कोई कहता है कि भगवान अपेक्षित धर्मों को नहीं जानते: भविष्य की पर्याय प्रगट हुई नहीं, इसलिए उन्हें सामान्यरूप से जानते हैं परन्तु विशेषरूप से नहीं जान सकते; और कोई कहता है कि यदि भगवान भूत-भावी स्पष्ट जानते हों तो मेरी पहली और अन्तिम पर्याय कौन सी? वह कह दें - इस प्रकार अनेक प्रकार की मिथ्या मान्यताएँ चल रही हैं तथा भगवान ने सब जान लिया हो तो जीवों को कोई पुरुषार्थ करना नहीं रहता है - ऐसी विपरीत मान्यताएँ भी कितने ही लोग रखते हैं परन्तु जो जीव स्व-सन्मुख होकर अपने स्वरूप का ज्ञाता होता है, उसे क्रमबद्धपर्याय का यथार्थ निर्णय हो सकता है और वह निर्णय यथार्थ पुरुषार्थ के बिना नहीं होता - यह बात उन्हें लक्ष्य में नहीं आती; इसलिए आत्मा का मूल स्वभाव