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________________ [xiv] (4) मोक्षमार्ग मोक्षमार्ग तो एक ही है और वह निश्चयमोक्षमार्ग है किन्तु निश्चय और व्यवहार ऐसे दो मोक्षमार्ग नहीं हैं। उस निश्चयमोक्षमार्ग का कथन दो प्रकार का है - (1) निश्चयमोक्षमार्ग, (2) व्यवहारमोक्षमार्ग; अर्थात् प्रत्येक कार्य में दो कारण होते हैं - उपादान और निमित्त / उनमें उपादान, निश्चयमोक्षमार्ग है और उस समय की अपूर्ण रही हुई और विकारी दशा, निमित्त होने से उसे व्यवहारमोक्षमार्ग कहते हैं। बहुत से लोग दो मोक्षमार्ग होना मानते हैं परन्तु वह मान्यता मिथ्या है। इस सम्बन्ध में श्री दिगम्बर जैन संघ मथुरा से प्रकाशित हिन्दी मोक्षमार्गप्रकाशक की प्रस्तावना में पृष्ठ 9-10 पर लिखा है कि .....आपने इस बात का खण्डन किया है कि मोक्षमार्ग निश्चय -व्यवहाररूप दो प्रकार का है। वे लिखते हैं कि यह मान्यता निश्चय -व्यवहारावलम्बी मिथ्यादृष्टियों की है, वास्तव में तो मोक्षमार्ग दो नहीं हैं किन्तु मोक्षमार्ग निरूपण का दो प्रकार है। पाठक देखेंगे कि जो लोग निश्चयसम्यग्दर्शन, व्यवहारसम्यग्दर्शन, निश्चयरत्नत्रय, व्यवहाररत्नत्रय, निश्चयमोक्षमार्ग, व्यवहारमोक्षमार्ग इत्यादि दो भेदों की रात-दिन चर्चा करते कहते हैं; उनके मन्तव्य से पण्डितजी का मन्तव्य कितना भिन्न है? इसी प्रकार आगे चलकर उन्होंने लिखा है कि निश्चय-व्यवहार दोनों को उपादेय मानना भी भ्रम है, क्योंकि दोनों नयों का स्वरूप परस्पर विरुद्ध है; इसलिए दोनों नयों का उपादेयपना नहीं बन सकता। अभी तक तो यही धारणा थी कि न केवल निश्चय उपादेय है, न केवल व्यवहार किन्तु दोनों ही उपादेय हैं किन्तु पण्डितजी ने उसे मिथ्यादृष्टियों की प्रवृत्ति बतलाई है।...
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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