________________ प्रस्तावना विक्रम संवत् 2010 के श्रावण महीने में भी प्रतिवर्ष की भाँति प्रौढ़ जैन शिक्षणवर्ग का आयोजन हुआ था। उस समय अध्ययन में 'श्री लघु जैन सिद्धान्त प्रवेशिका' तथा 'श्री मोक्षमार्गप्रकाशक' का नववाँ अधिकार जैन धार्मिक शिक्षण के रूप में रखा गया था। ___ वर्ग में जिन विषयों का अभ्यास कराया जाता था, तत्सम्बन्धी अनेक प्रश्न, पाठशाला के अध्यापक श्री हीराचन्दभाई ने अभ्यासियों को लिखाये थे तथा विद्यार्थियों ने प्रश्न तैयार किये थे। शिक्षण वर्ग की समाप्ति के समय उन प्रश्नों को व्यवस्थितरूप से सङ्कलित करके उन्हें पस्तकाकार प्रकाशित कराने का विचार हुआ था; उसी के फलस्वरूप यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। ___ इस पुस्तक में मुख्य उपयोगी प्रश्न और उनके अनुशीलन में जो -जो उपयोगी प्रश्न उद्भूत हुए, उन सबका उत्तरसहित समावेश किया गया है तथा उन प्रश्नों का प्रकरणानुसार वर्गीकरण करके मालारूप गूंथकर 'श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तर माला' के नाम से आज मुमुक्षुओं के हाथों में देते हुए हर्ष हो रहा है। इस माला में प्राथमिक अभ्यासियों को-मुख्यतः तत्त्व के जिज्ञासुओं को अध्ययन के लिए जो-जो विषय अत्युपयोगी हों, वे सभी- द्रव्य-गुणपर्याय; द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव; उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य; द्रव्य के सामान्य तथा विशेष गुण; चार अभाव; कर्ता-कर्म आदि छह कारक; उपादान-निमित्त निमित्त-नैमित्तिक; निश्चय-व्यवहार;