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परिशिष्ट - 1
सर्वज्ञता की महिमा • मोक्षमार्ग के मूल उपदेशक श्री सर्वज्ञदेव हैं; इसलिए जिसे धर्म करना हो, उसे सर्वज्ञ को पहिचानना चाहिए।
• निश्चय से जैसा सर्वज्ञ भगवान का स्वभाव है, वैसा ही इस आत्मा का स्वभाव है; इसलिए सर्वज्ञ को पहिचानने से अपने आत्मा की पहिचान होती है। जो जीव सर्वज्ञ को नहीं पहिचानता, वह अपने आत्मा को भी नहीं पहचानता।
•समस्त पदार्थों को जानने के सामर्थ्यरूप सर्वज्ञत्वशक्ति आत्मा में त्रिकाल है, किन्तु पर में कोई फेरफार करे - ऐसी शक्ति आत्मा में कदापि नहीं है
• अहो! समस्त पदार्थों को जानने की शक्ति आत्मा में सदैव विद्यमान है, उसकी प्रतीति करनेवाला जीव धर्मी है।
• वह धर्मी जीव जानता है कि मैं अपनी ज्ञान क्रिया का स्वामी हूँ, किन्तु पर की क्रिया का मैं स्वामी नहीं हूँ।
• आत्मा में सर्वज्ञशक्ति है, उस शक्ति का विकास होने पर अपने में सर्वज्ञता प्रगट होती है, किन्तु आत्मा की शक्ति का विकास पर का कुछ कर दे - ऐसा नहीं होता।