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प्रकरण दसवाँ
कमजोरीवश चारित्रमोह के उदय में जुड़ता है, वहाँ तक भूमिकानुसार आस्रव-बन्ध होते हैं किन्तु उनका स्वामित्व उसके नहीं है। अभिप्राय में तो वह आस्रव-बन्ध से सर्वथा निवृत्त होना चाहता है, इसलिए वह ज्ञानी ही है।
( श्री समयसार गाथा 72 का भावार्थ)