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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
केवलज्ञान प्रगट होने से पूर्व ज्ञान के विकार का जितना अभाव है, वह औदयिकभाव है। '
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ज्ञान, दर्शन और वीर्यगुण की अवस्था में औपशमिकभाव होता ही नहीं; मोह का ही उपशम होता है; उसमें प्रथम मिथ्यात्व का (दर्शनमोह का) उपशम होने पर जो सम्यक्त्व प्रगट होता है, वह श्रद्धागुण का औपशमिकभाव है।
(मोक्षशास्त्र अध्याय 2 सूत्र 1 की टीका ) प्रश्न 61 - जीव के असाधारण पाँच भाव क्या बतलाते हैं ? उत्तर - (1) जीव का अनादि-अनन्त शुद्धचैतन्यस्वभाव है - ऐसा पारिणामिकभाव सिद्ध करता है ।
(2) जीव का अनादि अनन्त शुद्ध चैतन्यस्वभाव होने पर भी उसकी अवस्था में विकार है - ऐसा औदयिकभाव सिद्ध करता है।
(3) जड़कर्म के साथ जीव का अनादिकालीन सम्बन्ध है और जीव उसके वश होता है, इसलिए विकार होता है, किन्तु कर्म के कारण विकारभाव नहीं होता - ऐसा भी औदयिकभाव सिद्ध करता है ।
(4) जीव अनादि से विकार करता आ रहा है, तथापि वह जड़ नहीं हो जाता और उसके ज्ञान, दर्शन तथा वीर्य का अंशत: विकास तो सदैव रहता है - ऐसा क्षायोपशमिकभाव सिद्ध करता है ।
(5) सच्ची समझ के पश्चात् जीव ज्यों-ज्यों सत्य पुरुषार्थ बढ़ाता है, त्यों-त्यों मोह अंशतः दूर होता जाता है - ऐसा भी क्षायोपशमिकभाव सिद्ध करता है।
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(6) आत्मा का स्वरूप यथार्थतया समझकर, जब जीव