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प्रकरण दसवाँ
(1) एक समय में कर्म के जितने परमाणु उदय में आये, उन सर्व के समूह को निषेक कहते हैं।
(2) जीव के सम्यक्त्व-ज्ञानादि अनुजीवी गुणों को जो पूर्ण रीति से घात होने में निमित्त है, उन्हें सर्वघाती कहते हैं।
(3) वर्गणाओं के समूह को स्पर्द्धक कहते हैं।
(4) फल दिये बिना उदय में आये हुए कर्मों का खिर जाना, उसे उदयाभावी क्षय कहते हैं।
(5) जो जीव के ज्ञानादि गुणों को एकदेश घात होने में निमित्त है, उसे देशघाती कहते हैं।
प्रश्न 59 - औदयिकभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर - कर्मों के उदय के साथ सम्बन्ध रखनेवाला आत्मा का जो विकारी भाव होता है, उसे औदयिकभाव कहते हैं।
प्रश्न 60 - पारिणामिकभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर - कर्मों के उपशम, क्षय, क्षयोपशम अथवा उदय की अपेक्षा रखे बिना जीव का जो स्वभावमात्र हो, उसे पारिणामिकभाव कहते हैं।
'जिसका निरन्तर सद्भाव रहे, उसे पारिणामिकभाव कहते हैं। सर्वभेद जिसमें गर्भित है – ऐसा चैतन्यभाव ही जीव का पारिणामिकभाव है। मतिज्ञानादि तथा केवलज्ञानादि जो अवस्थाएँ हैं, वे पारिणामिकभाव नहीं है।
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान - यह अवस्थाएँ क्षायोपशमिकभाव हैं; केवलज्ञान अवस्था, क्षायिकभाव है।