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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
यह पाँच भाव जीवों के निजभाव हैं; जीव के अतिरिक्त अन्य किसी में ये नहीं होते ।
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प्रश्न 56 - औपशमिकभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर - कर्मों के उपशम के साथ सम्बन्धवाला आत्मा को जो भाव होता है, उसे औपशमिकाभाव कहते हैं ।
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'आत्मा के पुरुषार्थ का निमित्त पाकर जड़कर्म का प्रगटरूप फल जड़कर्मरूप में न आना, वह कर्म का उपशम है । '
(मोक्षशास्त्र, अध्याय 2, सूत्र 1 की टीका ) प्रश्न 57 - क्षायिकभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर - कर्मों के सर्वथा नाश के साथ सम्बन्धवाला आत्मा SIT जो अत्यन्त शुद्धभाव प्रगट होता है, उसे क्षायिकभाव कहते हैं।
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'आत्मा के पुरुषार्थ का निमित्त पाकर कर्म-आवरण का नाश
होना, वह कर्म का क्षय है ।' (मोक्षशास्त्र, अध्याय 2, सूत्र 1 की टीका)
प्रश्न 58 - क्षायोपशमिकभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर - कर्मों के क्षयोपशम के साथ सम्बन्धवाला जो भाव होता है, उसे क्षायोपशमिकभाव कहते हैं ।
'आत्मा के पुरुषार्थ का निमित्त पाकर कर्म का स्वयं अंशतः क्षय और स्वतं अंशत: उपशम वह कर्म का क्षयोपशम है... '
(मोक्षशास्त्र, अध्याय 2, सूत्र 1 की टीका)
'वर्तमान निषेक में सर्वघाती स्पर्द्धकों का उदयाभावी क्षय
तथा देशघाती स्पर्द्धकों का उदय और आनेवाले निषेकों का सवस्थारूप उपशम को क्षयोपशम कहते हैं । '
आगामी काल में उदय
ऐसी कर्म की अवस्था
(जैन सिद्धान्त प्रवेशिका)
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