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प्रकरण दसवाँ
है; किन्तु वह श्रद्धागुण की पर्याय नहीं है क्योंकि उसकी तो मिथ्यादर्शन तथा निश्चयसम्यग्दर्शन - यह दो ही पर्यायें होती हैं। व्यवहारसम्यक्त्व इन दोनों से एक भी नहीं है, वह विषय इससे भिन्न है । ( श्री पंचास्तिकाय गाथा 107, जयसेनचार्य कृत संस्कृत टीका) प्रश्न 48 - चारित्र का लक्षण (स्वरूप) क्या है ? उत्तर - (1) मोह और क्षोभरहित आत्मा का परिणाम;
(2) स्वरूप में चरना (विचरण करना) वह चारित्र है; अथवा (3) अपने स्वभाव में प्रवर्तन करना, शुद्ध चैतन्य का प्रकाशित होना - ऐसा उसका अर्थ है ।
(4) वही वस्तु का स्वभाव होने से धर्म है ।
(5) वही यथास्थिति आत्म गुण होने से (अर्थात् ) विषमता रहित-सुस्थित आत्मा का गुण होने से साम्य है । और -
(6) मोह-क्षोभ के अभाव के कारण अत्यन्त निर्विकार ऐसा जीव का परिणाम है।
(श्री प्रवचनसार गाथा 7 की टीका )
प्रश्न 49 - आस्रवों के अभाव का क्रम क्या है ?
उत्तर - (1) चौथा गुणस्थान (अविरत समयग्दृष्टि) प्रगट होने पर मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी का अभाव होता है; और साथ ही तत्सम्बन्धी अविरति, प्रमाद, कषाय और योग का भी अभाव होता है। (श्री समयसार गाथा 73 से 76 का भावार्थ ) (2) पाँचवें गुणस्थान में तदुपरान्त प्रत्याख्यानावरणीय कषाय का अभाव होने से तत्सम्बन्धी आंशिक अविरति आदि का अभाव होता है ।