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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
(3) छठवें गुणस्थान में तदुपरान्त अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय का अभाव होने पर तत्सम्बन्धी आंशिक प्रमादादि का अभाव होता है।
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(4) सातवें गुणस्थान में तदुपरान्त संज्वलन कषाय की तीव्रता का अभाव होने पर तत्सम्बन्धी प्रमादादि का अभाव होता है I
(5) आठवें गुणस्थान से स्वभाव का भलीभाँति अवलम्बन लेने से श्रेणी चढ़कर वह जीव क्षीणमोह जिन - वीतराग ऐसे बारहवें गुणस्थान को प्राप्त करता है । बारहवें गुणस्थान में कषाय का सर्वथा अभाव होता है, किन्तु योग रहता है।
(6) तेरहवें गुणस्थान में योग के निमित्त से एक समय का आस्रव है और 14 वें गुणस्थान में उस योग का भी अभाव हो जाता है।
प्रश्न 50 - केवलज्ञान स्व को निश्चय से जानता है और पर को व्यवहार से जानता है - इसका क्या अर्थ है ?
उत्तर- (1) ज्ञान, पर के साथ तन्मय होकर जाने तो निश्चय से जाना कहलाये, किन्तु ज्ञान, पर में तन्मय ( एकमेक) हुए बिना पर को जानता है; इसलिए वह व्यवहार से जानता है - ऐसा कहा जाता है; किन्तु जीव को पर सम्बन्धी ज्ञान नहीं होता- ऐसा उसका अर्थ नहीं है ।
(2) ज्ञान अपने में तन्मय होकर अपने को जानता है, वह निश्चय है ।
प्रश्न 51 - हेय, ज्ञेय और उपादेय का क्या अर्थ है ? उत्तर - (1) हेय = त्यागने योग्य