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प्रकरण दसवाँ
ज्ञानादि नहीं होते; इसलिए व्यवहारनय प्रतिषेध्य हैं) और निश्चय, व्यवहारनय का प्रतिषेधक है क्योंकि शुद्ध आत्मा को ज्ञानादि का आश्रयपना एकान्तिक है। (शद्ध आत्मा को ज्ञानादिकका आश्रयपना मानने में व्यभिचार नहीं है, क्योंकि जहाँ शुद्ध आत्मा हो, वहाँ ज्ञान-दर्शन-चारित्र होते ही हैं।)'
प्रश्न 36 - मोक्षमार्ग एक ही है या अधिक हैं?
उत्तर - (1) मोक्षमार्ग एक ही है और वह निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता ही है।
(2) श्री प्रवचनसार गाथा 199 की टीका में कहा है कि - 'समस्त सामान्य चरम शरीरी तीर्थंकर और अचरम शरीर मुमुक्षु इसी यथोक्त शुद्धात्मतत्त्व प्रवृत्ति लक्षण विधि द्वारा प्रवर्तमान मोक्षमार्ग को प्राप्त करके सिद्ध हुए, परन्तु ऐसा नहीं है कि अन्य विधि से भी हुए हों; इसलिए निश्चित होता है कि मात्र यह एक ही मोक्ष का मार्ग है, अन्य नहीं है।'
(3) श्री प्रवचनसार गाथा 82 की टीका में कहा है कि - 'सर्व अरिहन्त भगवन्त उसी विधि से कर्मोशों का क्षय करके तथा अन्य को भी उसी प्रकार उपदेश देकर मोक्ष को प्राप्त हुए हैं।'
टीका - अतीत काल में क्रमशः हो गये समस्त तीर्थङ्कर भगवन्त, प्रकारान्तर का असम्भव होने के कारण जिसमें द्वैत सम्भव नहीं है - ऐसे इसी एक प्रकार से कर्मांशों के क्षय का स्वयं अनुभव करके तथा परम आप्तपने के कारण भविष्यकाल में अथवा इस (वर्तमान) काल में अन्य मुमुक्षुओं को भी इसी प्रकार उसका (कर्म क्षय का) उपदेश करके, निःश्रेयस को प्राप्त