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प्रकरण दसवाँ
निरूपण की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन के दो प्रकार कहे हैं, किन्तु एक निश्चय सम्यग्दर्शन है और एक व्यवहार सम्यग्दर्शन है - इस प्रकार दो सम्यग्दर्शन मानना वह मिथ्या है।
प्रश्न 33 - निश्चय सम्यग्ज्ञान और व्यवहार सम्यग्ज्ञान - ऐसा दो प्रकार का सम्यग्ज्ञान है ?
उत्तर - नहीं; सम्यग्ज्ञान कहीं दो प्रकार का नहीं है, किन्तु उसका निरूपण दो प्रकार से हैं। जहाँ सच्चे सम्यग्ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहा हो. वह निश्चय सम्यग्ज्ञान है. किन्त जो सम्यग्ज्ञान तो नहीं है परन्तु सम्यग्ज्ञान का निमित्त है अथवा सहचारी है, उसे उपचार से सम्यग्ज्ञान कहा जाता है; इसलिए निश्चय द्वारा जो निरूपण किया हो, उसे सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान अङ्गीकार करना चाहिए, तथा व्यवहारनय द्वारा जो निरूपण किया हो, उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोड़ना चाहिए।
प्रश्न 34 - निश्चयचारित्र और व्यवहारचारित्र - ऐसा दो प्रकार का चारित्र है?
उत्तर - नहीं;चारित्र तो दो नहीं है, किन्तु उसका निरूपण दो प्रकार से है। जहाँ सच्चे चारित्र को चारित्र कहा है, वह निश्चय चारित्र है तथा जो सम्यक्चारित्र तो नहीं है, किन्तु सम्यक्चारित्र का निमित्त है अथवा सहचारी है, उसे उपचार से चारित्र कहते हैं, वह व्यवहार सम्यक्चारित्र है। निश्चयनय द्वारा जो निरूपण किया हो उसे सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान करना चाहिए और व्यवहारनय द्वारा जो निरूपण किया जो उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोड़ना चाहिए।