________________
श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
प्रश्न 31 - सम्यक् चारित्र प्रगट करने के पश्चात् धर्मी जीव क्या करता है ?
371
उत्तर - (1) एकाकार निज ज्ञायकस्वभाव में विशेष रमणता करने से शुद्धि की वृद्धि होती है। इस प्रकार धर्मपरिणति की वृति - अनुसार शुद्धता बढ़ती जाती है और शुद्धता के प्रमाण में घातिकर्मों के स्थिति - अनुभाग स्वयं घटते हैं तथा क्रमशः आगे बढ़ने पर पूर्ण वीतरागता प्रगट होती है और उस समय द्रव्यमोहकर्म भी स्वयं नाश होता है ।
(2) तत्पश्चात् परिणाम विशेष शुद्ध होने पर केवलज्ञान प्रगट होता है, वहाँ तीन घातिकर्मों का स्वयं नाश हो जाता है। फिर शेष गुणों की पर्यायों की पूर्ण शुद्धता होने पर अघातिकर्मों का भी स्वयं नाश हो जाता है और जीव सिद्धपद प्राप्त करता है ।
प्रश्न 32 - निश्चय और व्यवहार - ऐसे दो प्रकार के सम्यग्दर्शन हैं ?
उत्तर - नहीं; सम्यग्दर्शन एक ही प्रकार का है, दो प्रकार का नहीं है किन्तु उसका कथन दो प्रकार से है। जहाँ सच्चे सम्यग्दर्शन का निरूपण किया है वह निश्चय - सम्यग्दर्शन है, तथा जो सम्यग्दर्शन तो नहीं है किन्तु सम्यग्दर्शन का निमित्त है अथवा सहचारी है, उसे उपचार से सम्यग्दर्शन कहा जाता है किन्तु व्यवहार सम्यग्दर्शन को सच्चा सम्यग्दर्शन माने तो वह श्रद्धा मिथ्या है क्योंकि निश्चय और व्यवहार का सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है अर्थात् सच्चा निरूपण, वह निश्चय और उपचार निरूपण, वह व्यवहार है ।