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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
वह ज्ञानयुक्त नहीं होता, यही ज्ञानदोष हुआ; इसलिए उसी ज्ञान को मिथ्याज्ञान कहा है। (देहली से प्रकाशित मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 127 )
प्रश्न 10 कारणविपरीतता किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिसे वह जानता है, उसके मूल कारण को तो न पहिचाने और अन्यथा कारण माने, वह कारणविपरीतता है ।
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प्रश्न 11 - स्वरूपविपरीतता किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिसे वह जानता है, उसके मूल वस्तु स्वरूप को तो न पहिचाने और अन्यथा स्वरूप माने, वह स्वरूपविरीतता है । प्रश्न 12 - भेदाभेदविपरीता किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिसे वह जानता है उसे 'यह इससे भिन्न है तथा यह इससे अभिन्न है' ऐसा यथार्थ न जानकर अन्यथा भिन्नभिन्नपना माने, वह भेदाभेदविपरीतता है। (मोक्षमार्गप्रकाशक (दिल्ली से प्रकाशित) पृष्ठ 123, तथा गुज० आवृत्ति, पृ. 89 )
प्रश्न 13 - निमित्त और उपादान दोनों एक साथ मिलकर कार्य करते हैं - ऐसा जाननेवाले के ज्ञान में क्या दोष है ?
उत्तर- (1) मूल (सच्चा) कारण तो उपादान है, उसे उसने नहीं जाना और निमित्त - उपादान दोनों का मूल कारणरूप माना, इसलिए उसके कारणविपरीता हुई ।
(2) उपादान अपना कार्य करे, तब उचित निमित्त स्वयं उपस्थित होता है; इसलिए निमित्त को उपचारमात्र कारण कहा जाता है - ऐसे स्वरूप को उसने नहीं पहिचाना, इसलिए उपादाननिमित्त के मूलभूत वस्तु स्वरूप को नहीं जाना; अतः उसके स्वरूपविपरीतता हुई।