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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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(3) जो ऐसा स्वतन्त्र वस्तुस्वभाव समझता है, वही स्व-पर का भेदविज्ञानी होकर, स्वसन्मुख होकर निश्चितरूप से अन्तरङ्ग सुख का सच्चा उपाय कर सकता है।
प्रश्न 18 - जीव और शरीर में अनेकान्त किस प्रकार लागू होता है?
उत्तर - इस सम्बन्ध में श्री प्रबोधसार (श्रावकाचार) की गाथा 168 में निम्नानुसार कहा है - (पृष्ठ 144)
परद्रव्यं परद्रव्यं स्वद्रव्यं द्रव्यमात्मनः सम्बन्धोऽपि तयोर्नास्ति यथायं सह्यविन्ध्ययोः॥ अर्थात् परद्रव्य सदैव परद्रव्य ही रहता है और स्वद्रव्य सदा स्वद्रव्य ही रहता है । स्वद्रव्य और परद्रव्य - दोनों में कोई सम्बन्ध नहीं है - जिस प्रकार सह्य पर्वत और विन्ध्य पर्वत में परस्पर कुछ सम्बन्ध नहीं है।
भावार्थ - जिस प्रकार सह्यादि और विन्ध्यादि - दोनों पर्वत सर्वथा भिन्न हैं, उनमें परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है; उसी प्रकार आत्मा और शरीरादिक परद्रव्य दोनों सर्वथा भिन्न हैं, उनमें परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है।
प्रश्न 19 - अनेकान्त का प्रयोजन क्या है?
उत्तर - अनेकान्तिक मार्ग भी सम्यक् एकान्त ऐसे निजपद की प्राप्ति कराने के सिवाय अन्य किसी भी हेतु से उपकारी नहीं है।
(श्रीमद् राजचन्द्र)