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________________ 354 प्रकरण नववाँ में उपस्थित होता है, किन्तु नैमित्तिक, वह निमित्त से पर है और निमित्त, वह नैमित्तिक से पर है; इसलिए एक-दूसरे का कुछ नहीं कर सकते। नैमित्तिक के ज्ञान में निमित्त परज्ञेयरूप से ज्ञात होता है। __(मोक्षशास्त्र, अध्याय 4 का उपसंहार) प्रश्न 15 - अर्पित और अनर्पित कथन द्वारा अनेकान्त स्वरूप किस प्रकार समझ में आता है ? उत्तर - अर्पितानर्पितः सिद्धेः। (तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय 5, सूत्र 32) (1) प्रत्येक वस्तु अनेकान्तस्वरूप है। यह सिद्धान्त इस सूत्र में स्याद्वाद द्वारा कहा है। नित्यता और अनित्यता परस्पर विरुद्ध दो धर्म होने पर भी, वे वस्तु को सिद्ध करनेवाले हैं; इसलिए वे प्रत्येक द्रव्य में होते ही हैं। उनका कथन मुख्य-गौणरूप से होता है, क्योंकि सभी धर्म एक साथ नहीं कहे जा सकते। जिस समय जो धर्म सिद्ध करना हो, उस समय उसकी मुख्यता की जाती है। उस मुख्यता / प्रधानता को अर्पित' कहा जाता है और उस समय जो धर्म गौण रखे हों, उन्हें अनर्पित कहा जाता है। अनर्पित रखे हुए धर्म उस समय कहे नहीं गये हैं तो भी वस्तु में वे धर्म रहे हुए हैं - ऐसा ज्ञानी जानता है। (2) जिस समय द्रव्य की अपेक्षा से द्रव्य को नित्य कहा, उसी समय वह पर्याय की अपेक्षा से अनित्य है। मात्र उस समय 'अनित्यता' नहीं कही किन्तु गर्भित रखी है और जब पर्याय की अपेक्षा से द्रव्य को अनित्य कहा, उसी समय वह द्रव्य की अपेक्षा से नित्य है; मात्र उस समय 'नित्यता' कही नहीं है (गर्भित रखी है); क्योंकि दोनों धर्म एक साथ नहीं कहे जा सकते।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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