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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 351 उनका (सुख-दु:ख का) द्वैत तो भगवान के नहीं बन सकता। भगवान को पर्याय में दुःख है ही नहीं। जो कुछ हो, उसी में अनेकान्त लागू हो सकता है। (पञ्चाध्यायी भाग 2, गाथा 333 से 335) प्रश्न 12 - पर्यायों में क्रमबद्ध और अक्रमबद्ध - ऐसा मानना – यह अनेकान्त सिद्धान्त के अनुसार सत्य है ? उत्तर - नहीं, पर्यायें क्रमबद्ध ही होती, अक्रमबद्ध होती ही नहीं - यह अनेकान्त है। पञ्चाध्यायी' (भाग 2, गाथा 334) के अनुसार गुण अक्रम हैं और पर्यायं क्रमबद्ध ही हैं। प्रश्न 13 - अनेकान्त क्या बतलाता है ? उत्तर - (1) अनेकान्त वस्तु को पर से असङ्ग बतलाता है। असङ्गपने की स्वतन्त्र श्रद्धा, वह असङ्गता के विकास का उपाय है; पर से पृथकत्व, वह वस्तु का स्वभाव है। __ (2) अनेकान्त, वस्तु को 'स्वरूप से है और पररूप से नहीं है' - ऐसा बतलाता है। आत्मा पररूप से नहीं है, इसलिए वह परवस्तु का कुछ भी करने में असमर्थ है; और परवस्तु न हो तो उसका आत्मा को दुःख भी नहीं है। 'तू अपने रूप है' तो पररूप नहीं है और परवस्तु अनुकूल हो या प्रतिकूल - उसे बदलने में तू समर्थ नहीं है। बस, इतना निर्णय कर तो श्रद्धा, ज्ञान और शान्ति तेरे पास ही है। (3) अनेकान्त, वस्तु की स्व-रूप से सत् बतलाता है। सत् को सामग्री की आवश्यकता नहीं है, संयोग की आवश्यकता नहीं है, किन्तु सत् को सत् के निर्णय की आवश्यकता है - 'सत्रूप हूँ, पररूप नहीं हूँ।'
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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