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प्रकरण नववाँ
प्रश्न 10 - जीवद्रव्य को सप्तभङ्गी' में उतारकर समझाइये? उत्तर - पहला भङ्ग - ‘स्यात् अस्ति।'
जीवः स्याद् अस्ति एव। जीव, स्वरूप की अपेक्षा से ही (अर्थात् जीव अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से ही) है। इस कथन में जीव स्वरूप की अपेक्षा से है' - यह बात मुख्यरूप से है और 'जीव पररूप की अपेक्षा से नहीं है' - यह बात गौणरूप से उसमें गर्भित है।
- ऐसा जो जाने उसी ने जीव के 'स्यात् अस्ति' भङ्ग को यथार्थ जाना है, किन्तु यदि 'जीव पर की (अजीव स्वरूप की) अपेक्षा से नहीं है' - ऐसा उसके लक्ष्य में गर्भितरूप से न आये तो वह जीव का 'स्याद् अस्ति स्वरूप' - जीव का सम्पूर्ण स्वरूप नहीं समझा है, और इसलिए वह दूसरे छह भङ्ग भी नहीं समझा है।
दूसरा भङ्ग - ‘स्यात् नास्ति'।
जीवः स्याद् नास्ति एव। जीव पर रूप की अपेक्षा से (अर्थात् जीव पर के द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से) नहीं ही है।
इस कथन में जीव पररूप की अपेक्षा से नहीं है' - यह बात मुख्यरूप से है और 'जीव स्वरूप की अपेक्षा से है' - यह बात गौण रूप से उसमें गर्भित है।
जीव और पर एक-दूसरे के प्रति अवस्तु हैं - ऐसा 'स्यात् नास्ति' पद सूचित करता है। - इस प्रकार दोनों भङ्ग स्व-पर की अपेक्षा से विधि - निषेधरूप जीव के ही धर्म हैं।
तीसरा भङ्ग - 'स्यात् अस्ति नास्ति।' जीवः स्याद् अस्ति नास्ति एव - जीव, स्वरूप की अपेक्षा