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________________ 346 प्रकरण नववाँ है क्योंकि 'सम्यग्ज्ञानपूर्वक वैराग्य होता है' - ऐसा उसमें गर्भितरूप से आ जाता है। ___ 'त्याग ही धर्म है' - ऐसा जानना, वह मिथ्या एकान्त है, क्योंकि 'त्याग के साथ सम्यग्ज्ञान होना ही चाहिए' - ऐसा उसमें नहीं आता। (मोक्षशास्त्र, अध्याय 1, सूत्र 6 की टीका) प्रश्न 9 - स्याद्वाद किसे कहते हैं ? उत्तर - (1) वस्तु के अनेकान्त स्वरूप को समझानेवाली कथनपद्धति को स्याद्वाद कहते हैं। _[स्यात् = कथञ्चित; किसी प्रकार से, किसी सम्यक् अपेक्षा से; वाद = कथन।] 'स्याद्वाद' अनेकान्त का द्योतक है । बतलानेवाला है। अनेकान्त और स्याद्वाद को द्योत्य-द्योतक सम्बन्ध है। (2) ...ऐसा जो अनन्त धर्मोंवाला द्रव्य, उसके एक-एक धर्म का आश्रय करके विवक्षित-अविवक्षित के विधि-निषेध द्वारा प्रगट होनेवाली सप्तभङ्गी सतत् सम्यक् प्रकार से उच्चारण किये जानेवाले स्यात्काररूपी अमोघ मन्त्रपद द्वारा, 'ही' कार में भरे हुए सर्व विरोध विष के मोह को दूर करता है। (प्रवचनसार, गाथा 115 की टीका) (3) विवक्षित (जिसका कथन करना है) धर्म को मुख्य करके उसका प्रतिपादन करने से और अविवक्षित (जिसका कथन नहीं करना है) धर्म को गौण करके उसका निषेध करने से सप्तभङ्गी प्रगट होती है। स्वाद्वाद में अनेकान्त को सूचित करते हुए 'स्यात्' शब्द
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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