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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला हों, ऐसे स्वभावों की कल्पना करना, वह मिथ्या अनेकान्त है । 8. जीव अपने भाव कर सकता है और परवस्तु का कुछ नहीं कर सकता ऐसा जानना, वह सम्यक् अनेकान्त है । - 345 जीव सूक्ष्म पुद्गलों का कुछ नहीं कर सकता, किन्तु स्थूल पुद्गलों का कर सकता है ऐसा जानना, वह मिथ्या अनेकान्त है। (मोक्षशास्त्र, अध्याय 1, सूत्र 6 की टीका ) - प्रश्न 7 - सम्यक् एकान्त और मिथ्या एकान्त किसे कहते हैं ? उत्तर - सम्यक् एकान्त :- अपने स्वरूप से अस्तित्व और पररूप से नास्तित्व - आदि जो वस्तुस्वरूप है, उसकी अपेक्षा रखकर प्रमाण द्वारा जाने हुए पदार्थ के एक देश का (एक पक्ष का) विषय करनेवाला नय, वह सम्यक् एकान्त है । - किसी वस्तु के एक धर्म का निश्चय करके, उसमें रहनेवाले अन्य धर्मों का निषेध करना, वह मिथ्या एकान्त है । प्रश्न 8 - सम्यक् एकान्त और मिथ्या एकान्त दृष्टान्त दीजिये ? उत्तर - (1) सिद्ध भगवान एकान्त सुखी हैं - ऐसा जानना, वह सम्यक् एकान्त हैं, क्योंकि सिद्ध जीवों को बिल्कुल दुःख नहीं है - ऐसा गर्भितरूप उसमें आ जाता है । सर्व जीव एकान्त सुखी हैं ऐसा जानना, वह मिथ्या एकान्त है क्योंकि अज्ञानी जीव वर्तमान में दुःखी है इसका उसमें अस्वीकार होता है । (2) सम्यग्ज्ञान धर्म है - ऐसा जानना, वह सम्यक् - एकान्त -
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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