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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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उत्तर - सम्यक् अनेकान्त :- प्रत्यक्ष, अनुमान तथा आगम प्रमाण से अविरुद्ध एक वस्तु में जो अनेक धर्म हैं, उनका निरूपण करने में तत्पर है, वह सम्यक् अनेकान्त है। प्रत्येक वस्तु अपनेरूप है और पररूप नहीं है। आत्मा स्व-स्वरूप है और पर-स्वरूप नहीं है; पर उसके अपने स्वरूप है और दूसरे आत्मा के स्वरूप नहीं है - इस प्रकार जानना, वह सम्यक् अनेकान्त है।
मिथ्या अनेकान्त :- तत्-अतत् स्वभाव की जो मिथ्या कल्पना की जाए, वह मिथ्या अनेकान्त है। जीव अपना कर सकता है और दूसरे जीव का भी कर सकता है - इसमें जीव का अपने से तथा पर से - दोनों से तत्पना हुआ, इसलिए वह मिथ्या अनेकान्त है। (स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित, मोक्षशास्त्र, अध्याय 1, सूत्र 6 की टीका)
प्रश्न 6 - सम्यक् अनेकान्त और मिथ्या अनेकान्त के दृष्टान्त
दीजिए?
उत्तर - (1) आत्मा अपनेरूप है और पररूप नहीं है - ऐसा जानना, वह सम्यक् (सच्चा) अनेकान्त है।
आत्मा अपनेरूप है और पररूप भी है - ऐसा जानना, वह मिथ्या अनेकान्त है।
(2) आत्मा अपना कर सकता है और शरीरादि परवस्तुओं का कुछ नहीं कर सकता - ऐसा जानना, वह सम्यक् अनेकान्त है।
आत्मा अपना कर सकता है और शरीरादि पर का भी कर सकता है - ऐसा जानना, वह मिथ्या अनेकान्त है।। ___ (3) आत्मा को शुद्धभाव से धर्म होता है और शुभभाव से धर्म नहीं होता - ऐसा जानना, वह सम्यक् अनेकान्त है।