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प्रकरण नववाँ
प्रश्न 3 - दो विरुद्ध धर्मों सहित वस्तु सत्यार्थ होती है ? उत्तर - हाँ, वस्तु है, वह तत् - अतत् - ऐसे दोनों रूप है; इसलिए जो वाणी वस्तु को तत् ही कहती है, वह सत्य कैसे होगी ? - नहीं हो सकती... यहाँ ऐसा समझना कि वस्तु है, वह तो प्रत्यक्षादि प्रमाण के विषयरूप सत्-असत् (अस्ति - नास्ति) आदि विरुद्ध धर्म के आधारभूत है, वह अविरुद्ध (यथार्थ ) है । अन्य मतवादी (वस्तु को ) सत्रूप ही या असत्रूप ही है - इस प्रकार एकान्त कहते हैं तो कहो; वस्तु तो वैसी नहीं है। वस्तु स्वयं अपना स्वरूप अनेकान्त स्वरूप बतलाती है, तो हम क्या करें । वादी पुकारते हैं - विरुद्ध है रे... विरुद्ध र। जो पुकारो; कहीं निरर्थक पुकार में साध्य नहीं है....
(आप्तमीमांसा, गाथा 110 की टीका)
प्रश्न 4 - अनेकान्त और एकान्त का निरुक्ति अर्थ क्या है ?
उन दोनों के कितने-कितने भेद हैं ?
उत्तर - अनेकान्त = अनेक अन्त अनेक धर्म
+
-
एकान्त = एक + अन्त - एक धर्म |
अनेकान्त के दो भेद हैं- (1) सम्यक् अनेकान्त और (2) मिथ्या अनेकान्त ।
एकान्त के दो भेद हैं - (1) सम्यक् एकान्त और (2) मिथ्या एकान्त।
सम्यक् एकान्त, वह नय है और मिथ्या एकान्त, वह नयाभास है।
प्रश्न 5 स्वरूप क्या है ?
सम्यक् अनेकान्त और मिथ्या अनेकान्त का