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________________ प्रकरण नववाँ अनेकान्त और स्याद्वाद अधिकार प्रश्न 1 अनेकान्त किसे कहते हैं ? - उत्तर- (1) प्रत्येक वस्तु में वस्तुपने की सिद्धि करनेवाली अस्ति नास्ति आदि परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का एक ही साथ प्रकाशित होना, उसे अनेकान्त कहते हैं । आत्मा सदा स्व-रूप से है और पर - रूप से नहीं है - ऐसी जो दृष्टि, वही सच्ची अनेकान्त दृष्टि है। (2) सत्-असत्, नित्य - अनित्य, एक-अनेक इत्यादि सर्वथा एकान्त का निराकरण ( नकार), वह अनेकान्त है । (आप्तमीमांसा गाथा 103 की टीका) प्रश्न 2 - अनेकान्त स्वरूप किस प्रकार सिद्ध होता है ? उत्तर - पदार्थ अनेक धर्मवान हैं क्योंकि उसमें नित्यादि एकान्तस्वरूप का अभाव है । यहाँ अनेकान्तरूपपने से विरुद्ध स्वरूप का अभाव वस्तु के अनेकान्त स्वरूप को ही सिद्ध करता है। (परीक्षामुख, अध्याय 3, सूत्र 85 टीका )
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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