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________________ 340 प्रकरण आठवाँ के पद पर महाविदेहक्षेत्र में विराजमान हैं, उन्हें तीर्थङ्कर कहना, और महावीर भगवान, जो वर्तमान में सिद्ध हैं, उन्हें सिद्ध कहना, वह भावनिक्षेप है। नाम, स्थापना और द्रव्य - यह तीन निक्षेप, द्रव्य को विषय करते हैं, इसलिए ये द्रव्यार्थिकनय के आधीन हैं, और भावनिक्षेप, पर्याय को विषय करता है, इसलिए वह पर्यायार्थिकनय के आधीन (आलाप पद्धति) प्रश्न 74 - नैगमनय और द्रव्यनिक्षेप में क्या अन्तर है? उत्तर - यद्यपि नैगमनय और द्रव्यनिक्षेप के विषय समान मालूम होते हैं, तथापि वे एक नहीं है। नैगमनय ज्ञान का भेद है; इसलिए वह विषयी (जाननेवाला) है और द्रव्यनिक्षेप पदार्थों की अवस्थारूप है, इसलिए वह विषय (जाननेयोग्य-ज्ञेय) है। तात्पर्य यह है कि उनमें ज्ञायक-ज्ञेय या विषयी-विषय का सम्बन्ध है; इसीलिए दोनों एक नहीं है। (आलाप पद्धति) प्रश्न 75 - ऋजुसूत्रनय और भावनिक्षेप में क्या अन्तर है? उत्तर - 'भावनिक्षेप, द्रव्य की वर्तमान पर्यायमात्र को ग्रहण करता है । यद्यपि उसका विषय भी ऋजुसूत्रनय के साथ मिलता है, तथापि वह एक नहीं है। ऋजुसूत्रनय, प्रमाण का अंश होने से विषयी है और भावनिक्षेप, पदार्थ का पर्यायस्वरूप होने से विषय स्वरूप है; इसीलिए दोनों भिन्न-भिन्न हैं।' (आलाप पद्धति, पृष्ठ 118)
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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