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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
कर देना है कि 'यह वहीं है' - ऐसी भावना को स्थापना कहा जाता है; अन्य पदार्थ में उस स्थापना द्वारा आरोप करना अर्थात् अन्य पदार्थ में अन्य पदार्थ की स्थापना करना; जैसे कि पार्श्वनाथ की प्रतिमा को पार्श्वनाथ प्रभु कहना ।
स्थापनानिक्षेप के दो प्रकार हैं- (1) तदाकार स्थापना और (2.) अतदाकार स्थापना ।
जिस पदार्थ का जैसा आकार हो, वैसा आकार स्थापना में करना वह 'तदाकार स्थापना' है । सदृशता को स्थापनानिक्षेप का कारण नहीं समझना चाहिए किन्तु मात्र मनोभावना ही उसका कारण है।
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[नामनिक्षेप और स्थापनानिक्षेप में अन्तर है कि नामनिक्षेप में पूज्य-अपूज्य का व्यवहार नहीं होता, किन्तु स्थापनानिक्षेप में पूज्य - अपूज्य का व्यवहार होता है ।]
प्रश्न 72 - द्रव्यनिक्षेप किसे कहते हैं ?
उत्तर- भूतकाल में प्राप्त हुई अवस्था को अथवा भविष्यकाल प्राप्त होनेवाली अवस्था को वर्तमान में कहना, वह द्रव्यनिक्षेप है। श्रेणिकराजा भविष्य में तीर्थङ्कर होनेवाले हैं, उन्हें वर्तमान में तीर्थङ्कर कहना और महावीर भगवानादि भूतकाल में हुए तीर्थङ्करों को वर्तमान तीर्थङ्कर मानकर उनकी स्तुति करना, वह द्रव्यनिक्षेप है । प्रश्न 73 - भावनिक्षेप किसे कहते हैं ?
उत्तर - केवल वर्तमान पर्याय की मुख्यता से अर्थात् जो पदार्थ वर्तमान दशा में जिस रूप है, उसे उस रूप व्यवहार करना, वह भावनिक्षेप है; जैसे कि श्री सीमन्धर भगवान वर्तमान तीर्थङ्कर