________________
श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
337
(2) गुण संक्रमण बिना ही यदि आत्मा, कर्मादि का कर्ताभोक्ता हो तो सर्व पदार्थों में सर्व संकरदोष, तथा सर्व शून्यदोष आयेगा।
(गाथा 572-573) (3) मूर्तिमान ऐसा पुद्गलद्रव्य अपने आप ही जीव की अशुद्ध परिणति की उपस्थिति में कर्मरूप परिणमित हो जाता है, यही इस विषय में भ्रम का कारण है। (गाथा 573)
(4) जो कोई भी कर्ता-भोक्ता होता है, वह अपने भाव का ही होता है। जिस प्रकार कुम्हार वास्तव में अपने भाव का कर्ता-भोक्ता है किन्तु परभावरूप जो घड़ा, उसका कर्ता या भोक्त वह कदापि नहीं हो सकता।
(गाथा 577) (5) कुम्हार घड़े का कर्ता है - ऐसा लोकव्यवहार नयाभास है।
(गाथा 579) तीसरे नयाभास का स्वरूप
(1) जो बन्ध (एकत्व) को प्राप्त नहीं होते - ऐसे परपदार्थों में भी अन्य पदार्थ को अन्य पदार्थ का कर्ता-भोक्ता मानना, वह नयाभास है। ___(2) गृह, धन, धान्य, स्त्री, पुत्रादि को जीव स्वयं करता है और उनका उपभोग करता है - ऐसा मानना, वह नयाभास है।
[जीव का व्यवहार परपदार्थ में नहीं होता, किन्तु अपने में ही होता है। जीव का परद्रव्य के साथ सम्बन्ध बतलानेवाले सभी कथन अध्यात्मदृष्टि से नयाभास हैं।] (गाथा 580-81) चौथे नयाभास का स्वरूप
(1) ज्ञेय-ज्ञायक सम्बन्ध के कारण ज्ञान को ज्ञेयगत कहना,