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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 335 11. तत्र संश्लेषरहितवस्तुसम्बन्धविषय उपचरितासद्भूतव्यवहारो, यथा देवदत्तस्य धनमिति। अर्थात् जो पृथक वस्तुओं का (एकरूप) सम्बन्धरूप विषय करे, वह उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय है; जैसे कि देवदत्त का धन। 12. संश्लेषसहितवस्तुसंबंधविषयोऽनुपचरितासद्भूतव्यवहारो, यथा जीवस्य शरीरमिति। अर्थात् जो नय संयोग सम्बन्ध से युक्त दो भिन्न पदार्थों के सम्बन्ध को विषय करे, उसे अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय कहते हैं; जैसे कि - जीव का शरीर।। __ (पण्डित हजारीलालजी द्वारा सम्पादित आलापपद्धति, पृष्ठ 136 से 139) पञ्चाध्यायी अनुसार अध्यात्मनयों का स्वरूप तथा उनसे विरुद्ध नयाभासों का स्वरूप प्रश्न 68 - सम्यक्नय और नयाभास (मिथ्यानय) का क्या स्वरूप है? उत्तर - (1) जो नय तद्गुण' संविज्ञानसहित, उदाहरणसहित, हेतुसहित और फलवान (प्रयोजनवान) हो, वह सम्यक्नय है। जो उससे विपरीतनय है, वह नयाभास (मिथ्यानय) है क्योंकि परभाव को अपना कहने से आत्मा को क्या साध्य (लाभ) है ! (कुछ नहीं) 1. जीव के भाव वे, जीव के तद्गुण हैं; तथा पुद्गल के भाव, वे पुदगल के तद्गुण हैं - ऐसे विज्ञान सहित हैं।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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