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________________ 334 प्रकरण आठवाँ ___7. तत्रैकवस्तुविषयः सद्भूतव्यवहारः, भिन्नवस्तुविषयोऽसद्भूत व्यवहारः। तत्र सद्भूतव्यवहारो द्विविधः उपचरितानुपचरितभेदात्। अर्थात् एक वस्तु को (वृक्ष और डाली की भाँति भेदरूप) विषय करे, वह सद्भूतव्यवहारनय है। भिन्न-भिन्न वस्तुओं को (अभेदरूप-एकरूप) ग्रहण करे, वह असद्भूतव्यवहारनय है। उसमें सद्भूतव्यवहारनय के दो भेद हैं - (1) उपचरित और (2) अनुपचरित। 8. तत्रसोपाधिगुणगुणिनोर्भेदविषयः उपचरितसद्भूतोव्यवहारो, यथा जीवस्य मतिज्ञानादयो गुणाः। अर्थात् जो नय उपाधिसहित गुण-गुणी के भेद को विषय करे, वह उपचरित-सद्भूतव्यवहानय है; जैसे कि जीव के मतिज्ञानादि गुण कहना। 9. निरुपाधिगुणगुणिनोर्भेदविषयोऽनुपचरितसद्भूतव्यवहारो यथा जीवस्य केवलज्ञानादयो गुणः। ___ अर्थात् जो नय उपाधिरहित गुण-गुणी के भेद को विषय करे, उसे अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय कहते हैं; जैसे कि जीव के केवलज्ञानादि गुण; (परमाणु के स्पर्शादि गुण) 10. असद्भूतव्यवहारो, द्विविधः उपचरितानुपचरितभेदात्। अर्थात् असद्भूत व्यवहारनय के दो भेद हैं - (1) उपचरित -असद्भूतव्यवहारनय, (2) अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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