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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला अर्थात् उसमें निश्चयनय (गुण-गुणी के) अभेद को विषय करनेवाला है और व्यवहारनय (गुण- गुणी के) भेद को विषय करनेवाला है । 333 3. तत्रनिश्चयों द्विविधः शुद्धनिश्चयोऽशुद्धनिष्यश्च । अर्थात् उसमें निश्चयनय के दो प्रकार हैं - (1) शुद्धनिश्चयनय, (2) अशुद्ध निश्चयनय। 4. तत्रनिरुपाधिकगुणगुण्यभेदविषयकः शुद्ध निश्चयो, यथा केवल ज्ञानादयो जीव इति । अर्थात् निरुपाधिक (शुद्ध) गुण - गुणी को अभेदरूप विषय करनेवाला शुद्धनिश्चयनय है; जैसे कि जीव केवलज्ञानादि स्वरूप है। 5. सोपाधिकविषयोऽशुद्धनिश्चयो, यथा मतिज्ञानादयो जीवः । अर्थात् उपाधिसहित (गुण - गुणी का अभेदरूप) विषय करनेवाला, वह अशुद्धनिश्चयनय है; जैसे कि, जीव मतिज्ञानादि स्वरूप है। व्यवहारनय 6. व्यवहारो द्विविधः सद्भूतव्यवहारोऽसद्भूत व्यवहारश्च । अर्थात् व्यवहारनय दो प्रकार से है - (1) सद्भूतव्यवहारनय और (2) असद्भूतव्यवहारनय ।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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