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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
अर्थात् उसमें निश्चयनय (गुण-गुणी के) अभेद को विषय करनेवाला है और व्यवहारनय (गुण- गुणी के) भेद को विषय करनेवाला है ।
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3. तत्रनिश्चयों द्विविधः शुद्धनिश्चयोऽशुद्धनिष्यश्च । अर्थात् उसमें निश्चयनय के दो प्रकार हैं
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(1) शुद्धनिश्चयनय, (2) अशुद्ध निश्चयनय।
4. तत्रनिरुपाधिकगुणगुण्यभेदविषयकः शुद्ध निश्चयो, यथा केवल ज्ञानादयो जीव इति ।
अर्थात् निरुपाधिक (शुद्ध) गुण - गुणी को अभेदरूप विषय करनेवाला शुद्धनिश्चयनय है; जैसे कि जीव केवलज्ञानादि स्वरूप है।
5. सोपाधिकविषयोऽशुद्धनिश्चयो, यथा मतिज्ञानादयो जीवः ।
अर्थात् उपाधिसहित (गुण - गुणी का अभेदरूप) विषय करनेवाला, वह अशुद्धनिश्चयनय है; जैसे कि, जीव मतिज्ञानादि स्वरूप है।
व्यवहारनय
6. व्यवहारो द्विविधः सद्भूतव्यवहारोऽसद्भूत
व्यवहारश्च ।
अर्थात् व्यवहारनय दो प्रकार से है - (1) सद्भूतव्यवहारनय और (2) असद्भूतव्यवहारनय ।