________________
श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
321
प्रश्न 61 - निम्नोक्त श्लोक का शब्दार्थादि पाँच प्रकार से अर्थ करके समझाइये -
ये जाता ध्यानाग्निना कर्मकलङ्कानि दग्धवा। नित्यनिरंजनज्ञानमयास्तान् परमात्मनः नत्वा॥2॥
(परमात्मप्रकाश) उत्तर - (1) शब्दार्थ - (ये) जो (ध्यानाग्निना) ध्यानरूपी अग्नि से (कर्मकलङ्कानि) कर्मरूपी मैल को (दग्धा) भस्म करके (नित्य निरंजनज्ञानमयाः जाताः) नित्य, निरंजन और ज्ञानमयी हुए (तान् ) उन ( परमात्मन् ) सिद्धों को (नत्वा) नमस्कार करके...
(2) नयार्थ - (कर्मकलंकानि दग्धवा परमात्मनः जाताः) कर्म मल भस्म करके सिद्ध हुए - यह पर्यायार्थिकनय की मुख्यता से कथन है। इसका अर्थ यह है कि उन्होंने पहले कभी सिद्धपर्याय प्राप्त नहीं की थी, वह अब उन्होंने कर्म का नाश करके प्राप्त की। द्रव्यार्थिकनय से तो वे शक्ति की अपेक्षा से सदा शुद्ध, बुद्ध (ज्ञान) स्वभावरूप थे ही, अर्थात् शुद्धनय वे शक्तिरूप शुद्ध थे ही, वे अब पर्यायार्थिकनय से व्यक्तिरूप शुद्ध हुए (सिद्धपर्यायरूप हुए)।
(3) मतार्थ - (नित्यनिरंजनज्ञानमयाः) 'नित्य, निरंजन और ज्ञानमय' – इस कथन में 'नित्य' विशेषता, एकान्तवादी बोद्धों के मत का परिहार करता है - जो आत्मा को क्षणिक मानते हैं। ___ 'निरंजन' विशेषण नैयायिकों के मत का खण्डन करता है। वे मानते हैं कि कल्पकाल पूरा होने पर सारा जगत् शून्य हो जाता