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प्रकरण आठवाँ
हित होना मानता है, तथा परमात्मा का स्वरूप अन्यथा मानता है, वह मिथ्यामताबलम्बी है।
प्रश्न 60 - जैनशास्त्रों में अर्थ समझने की रीति क्या है?
उत्तर - जैनशास्त्रों के अर्थ समझने की रीति पाँच प्रकार की है - (1) शब्दार्थ, (2) नयार्थ, (3) मतार्थ, (4) आगमार्थ और (5) भावार्थ।
(1)शब्दार्थ - प्रकरण अनुसार वाक्य या शब्द का योग्य अर्थ समझना।
(2) नयार्थ- किस नय का वाक्य है ? उसमें भेद-निमित्तादि का उपचार बतलानेवाले व्यवहारनय का कथन है या वस्तु स्वरूप बतलानेवाले निश्चयनय का कथन है - उसका निर्णय करके अर्थ करना, वह नयार्थ है।
(3) मतार्थ - वस्तुस्वरूप से विपरीत ऐसे किस मत (सांख्य, बौद्धादिक) का खण्डन करता है और स्याद्वाद मत का मण्डन करता है - इस प्रकार शास्त्र का कथन समझना, वह मतार्थ है।
(4) आगमार्थ - सिद्धान्तानुसार जो अर्थ प्रसिद्ध हो, तदनुसार अर्थ करना, वह आगमार्थ है।
(5) भावार्थ - शास्त्र कथन का तात्पर्य - सारांश, हेयउपादेयरूप हेतु क्या है? - उसे जो बतलाये, यह भावार्थ है। निरंजन ज्ञानमयी परमात्मद्रव्य ही उपादेय है; इसके सिवा निमित्त अथवा किसी प्रकार का राग, विकल्प उपादेय नहीं है, यह कथन का भावार्थ समझना।