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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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किया जो, उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोड़ना चाहिए।'
(मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 250-251) प्रश्न 57 - व्यवहारनय और निश्चयनय का फल क्या है ?
उत्तर - वीतराग कथित व्यवहार, अशुभ में से बचाकर जीव को शुभभाव में ले जाता है; जिसका दृष्टान्त द्रव्यलिङ्गी मुनि हैं। वह भगवान के कहे हुए व्रतादि का निरतिचार पालन करता है और उस शुभभाव द्वारा नवमें ग्रैवेयक में जाता है, किन्तु उसका संसार बना रहता है; और भगवान का कहा हुआ निश्चय, शुभ तथा अशुभ दोनों से बचाकर जीव को शुद्धभाव में / मोक्ष में ले जाता है; उसका दृष्टान्त; सम्यग्दृष्टि है कि जो नियम से (निश्चित्) मोक्ष प्राप्त करता है।
(मोक्षशास्त्र अध्याय 1, सूत्र 6 की टीका) प्रश्न 58 - जैन शास्त्रों में दोनों नयों का ग्रहण करना कहा है, वह किस प्रकार?
उत्तर - जिनमार्ग में किसी स्थान पर तो निश्चयनय की मुख्यतासहित व्याख्यान है; उसे तो 'सत्यार्थ ऐसा ही है' - ऐसा जानना; तथा किसी स्थान पर व्यवहानय की मुख्यतासहित व्याख्यान है, उसे 'ऐसा नहीं है किन्तु निमित्तादि की अपेक्षा से यह उपचार किया है' - ऐसा जानना; इस प्रकार जानने का नाम ही दोनों नयों का ग्रहण है, किन्तु दोनों नयों के व्याख्यान को समान सत्यार्थ जानकर, 'इस प्रकार भी है तथा इस प्रकार भी है' - ऐसे भ्रमरूप प्रवर्तन से तो दोनों नय ग्रहण करने को नहीं कहा है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 251) प्रश्न 59 - नय के अन्य रीति से कितने प्रकार हैं?