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________________ 318 प्रकरण आठवाँ उत्तर - तीन प्रकार हैं - (1) शब्दनय, (2) अर्थनय और (3) ज्ञाननय। 1.शब्दनय - ज्ञान द्वारा जाने हुए पदार्थ का प्रतिपादन शब्द द्वारा होता है, इसलिए उस शब्द को शब्दनय कहते हैं; जैसे कि - 'मिश्री' शब्द, वह शब्दनय का विषय है। 2. अर्थनय - ज्ञान का विषय पदार्थ है; इसलिए नय से प्रतिपादित किये जानेवाले पदार्थ को भी नय कहते हैं; वह अर्थनय है। जैसे कि 'मिश्री' शब्द का वाच्य पदार्थ अर्थनय का विषय है। 'ज्ञानात्मकनय, वह परमार्थ से नय है और वाक्य उपचार से नय है।' (श्री धवल टीका, पुस्तक 9 वीं, पृष्ठ 164) 3. ज्ञाननय - वास्तविक प्रमाण ज्ञान है, वह जब एक देशग्राही होता है, तब उसे नय कहते हैं, इसलिए उसे ज्ञाननय कहते हैं; जैसे कि 'मिश्री' पदार्थ का अनुभवरूप ज्ञान, वह ज्ञाननय का विषय है। विशेष : (1) शास्त्रों के सच्चे रहस्य को समझने के लिए नयार्थ समझना चाहिए। उसे समझे बिना चरणानुयोग का कथन भी समझने में नहीं आता। गुरु का उपकार मानने का कथन आये, वहाँ समझना कि गुरु परद्रव्य है; इसलिए वह व्यवहार का कथन है। चरणानुयोग के शास्त्र में परद्रव्य छोड़ने की बात आये, वहाँ समझना कि उस राग को छोड़ने के लिए व्यवहारनय का कथन है। प्रवचनसार में शुद्धता और शुभराग की मैत्री कही है, किन्तु वास्तव में (निश्चय से) वह मित्रता नहीं है। राग तो शुद्धता का शत्रु है, किन्तु चरणानुयोग के शास्त्र में ऐसा कथन करने की पद्धति
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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