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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 313 प्रश्न 51 - असद्भूतव्यवहारनय के कितने भेद हैं? उत्तर - दो भेद हैं - (1) उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय और (2) अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय। प्रश्न 52 - उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय किसे कहते हैं ? उत्तर - अत्यन्त भिन्न पदार्थों को जो अभेदरूप से ग्रहण करे, उसे उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय कहते हैं; जैसे कि हाथी, घोड़ा, महल, मकान, वस्त्र, आभरणादि को जीव का कहना। (जैन सिद्धान्त प्रवेशिका) प्रश्न 53 - अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय किसे कहते हैं? उत्तर - जो नय संयोग सम्बन्ध से युक्त दो पदार्थों के सम्बन्ध को विषय बनाये, उसे अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय कहते हैं; जैसे कि जीव के कर्म, जीव का शरीर आदि। __ [1. जीव, द्रव्यकर्म और पुद्गल शरीर - इन तीनों का आकाश अपेक्षा से एक क्षेत्रावगाह सम्बन्ध है; इसलिए उसे अनुपचरित कहा जाता है। 2. जीव के कर्म और जीव का शरीर कहना, वह असद्भूत है। असद्भूत का अर्थ मिथ्या, असत्य, अयथार्थ है।] (परमात्म प्रकाश, अध्याय 1, गाथा 65 की हिन्दी टीका; प्रवचनसार अध्याय 1, गाथा 16 की टीका) 3. यह नय जीव का परपदार्थ के साथ का सम्बन्ध बतलाता है, इसलिए व्यवहारनय कहलाता है। 4. व्यवहार को अभूतार्थ भी कहा जाता है। अभूतार्थ, अर्थात्
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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