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प्रकरण आठवाँ
उत्तर - दो भेद हैं - (1) उपचरित-सद्भूतव्यवहारनय और (2) अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय।
प्रश्न 48 - उपचरित-सद्भूतव्यवहारनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - 1. जो उपाधिसहित गुण-गुणी को भेदरूप से ग्रहण करे, उसे उपचरित-सद्भूतव्यवहारनय कहते हैं; जैसे कि जीव के मतिज्ञानादिक गुण।
(जैन सिद्धान्त दर्पण) 2. जो नय कर्मोपाधिसहित अखण्ड द्रव्य में अशुद्ध गुण अथवा अशुद्ध गुणी, तथा अशुद्ध पर्याय और अशुद्ध पर्यायवान की भेदकल्पना करे, उसे उपचरित-सद्भूतव्यवहारनय (अशुद्ध सद्भूत -व्यवहारनय) कहते हैं, जैसे कि संसारी जीव के अशुद्ध मतिज्ञानादिक गुण अथवा अशुद्ध नर-नारकादि पर्यायें।
(आलाप पद्धति) प्रश्न 49 - अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - जो निरुपाधिक गुण और गुणी को भेदरूप ग्रहण करे, उसे अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय कहते हैं; जैसे कि जीव के केवलज्ञानादि गुण।
(जैन सिद्धान्त दर्पण) प्रश्न 50 - असद्भूतव्यवहारनय किसे कहते हैं?
उत्तर - जो मिश्रित भिन्न पदार्थों का अभेदरूप से कथन करे, उसे असद्भूतव्यवहारनय कहते हैं; जैसे कि यह शरीर मेरा है, अथवा मिट्टी के घड़े को घी का घड़ा कहना। (जैन सिद्धान्त प्रवेशिका)
[भिन्न पदार्थ वास्तविकरूप में अभेद नहीं होते, इसलिए यह नय असद्भूत कहलाता है और वह पर के साथ के सम्बन्ध का कथन करता है, इसलिए व्यवहारनय कहलाता है।]