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प्रकरण आठवाँ
प्रश्न 38 - संग्रहनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - जो नय अपनी जाति का विरोध न करके समस्त पदार्थों को एकत्व से ग्रहण करे, उसे संग्रहनय कहते हैं; जैसे कि - सत्, द्रव्य इत्यादि।
प्रश्न 39 - व्यवहारनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - जो नय, संग्रहनय से ग्रहण किये पदार्थों का विधिपूर्वक भेद करे, उसे व्यवहारनय कहते हैं; जैसे कि सत् दो प्रकार से है -द्रव्य और गुण। द्रव्य के छह भेद है - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। गुण के दो भेद हैं - सामान्य और विशेष । इस प्रकार जहाँ तक भेद हो सकते हैं, वहाँ तक यह नय भेद करता है।
प्रश्न 40 - पर्यायार्थिकनय के कितने भेद हैं ?
उत्तर - चार भेद हैं - (1) ऋजुसूत्रनय, (2) शब्दनय, (3) समभिरूढ़नय और (4) एवंभूतनय।
प्रश्न 41 - ऋजुसूत्रनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - भूत-भविष्य काल सम्बन्धी पर्याय की अपेक्षा न करके, वर्तमान काल सम्बन्धी पर्याय को ही जो विषय बनाये, उसे ऋजुसूत्रनय कहते हैं।
प्रश्न 42 - शब्दनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - जो लिङ्ग, वचन, कारकादि के व्यभिचार को दूर करे, उसे शब्दनय कहते हैं। जैसे कि दार (पुल्लिंग) भार्या (स्त्रीलिंग) कलत्र (नपुंसकलिंग) – यह तीनों शब्द भिन्न लिङ्ग