________________
श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
ज्ञान नैगमनय है, तथा पदार्थ के संकल्प को ग्रहण करनेवाला ज्ञान गमन है। जैसे कि कोई पुरुष रसोई के लिए चावल बीन रहा था, उस समय किसी ने पूछा कि 'तुम क्या कर रहे हो ?' तब उसने कहा कि ‘मैं भात बना रहा हूँ।' यहाँ चावल और भात में अभेद विवक्षा है, अथवा चावल में भात का संकल्प है।
309
(जैन सिद्धान्त प्रवेशिका) प्रश्न 37 - नैगमनय के कितने भेद हैं ?
उत्तर - तीन भेद हैं - (1) भूत नैगमनय, (2) भावि नैगमनय और (3) वर्तमान नैगमनय ।
1. भूत नैगमनय : भूत काल की बात को वर्तमान काल में आरोपण करके कहना, वह भूत नैगमनय है । जैसे कि 'आज दीपावली के दिन भगवान महावीर मोक्ष पधारे। '
T
निश्चयमोक्षमार्ग निर्विकल्प है, उस काल सविकल्पमोक्षमार्ग नहीं है तो वह साधक कैसे होगा ?
समाधान - भूत नैगमनय से वह परम्परा के साधक हैं। ( परमात्मप्रकाश, पृष्ठ 142 )
2. भावि नैगमनय : भविष्यत् काल में होनवाली बात को भूत कालवत् हुई कहना, वह भावी नैगमनय है। जैसे कि अरिहन्त भगवान को सिद्ध भगवान कहना ।
3. वर्तमान नैगमनय : कोई कार्य प्रारम्भ तो कर दिया हो, किन्तु वह कार्य कुछ हुआ - कुछ न हुआ हो, तथापि उसे पूर्ण हुए समान कहना, वह वर्तमान नैगमनय है । जैसे कि भात पकाने का कार्य आरम्भ तो कर दिया, परन्तु अभी वह पका नहीं है, तथापि ऐसा कहना कि भात पक रहा है। (आलाप पद्धति, पृष्ठ 65-66 )