________________
308
प्रकरण आठवाँ
पर द्रव्य सामान्य तथा द्रव्य के विशेष – दोनों ज्ञात होते हैं; इसलिए द्रव्य अनन्य तथा अन्य अन्य दोनों भासित होता है ।
द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक – दोनों नयों द्वारा वस्तु का जो ज्ञान होता है, वही प्रमाणज्ञान है । (श्री प्रवचनसार, गाथा 114 का भावार्थ ) प्रश्न 35 द्रव्यार्थिकनय के कितने भेद हैं ? ( आगम अपेक्षा से)
-
उत्तर - तीन भेद हैं - (1) नैगमनय, (2) संग्रहनय और (3) व्यवहारनय ।
प्रश्न 36 - नैगमनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - (1) जो भूतकालीन पर्याय में वर्तमानवत् संकल्प करे अथवा भविष्यकालीन पर्याय में वर्तमानवत् संकल्प करे तथा वर्तमान पर्याय में कुछ निष्पन्न (प्रगटरूप ) है और कुछ निष्पन्न नहीं है, इसका निष्पन्नरूप संकल्प करे, उस ज्ञान को तथा वचन को नैगमनय कहते हैं । (मोक्षाशास्त्र, अध्याय 1, सूत्र 33 की टीका) (2) जो नय अनिष्पन्न अर्थ के संकल्पमात्र को ग्रहण करे, वह नैगमनय है; जैसे कि लकड़ी, पानी आदि सामग्री एकत्रित करनेवाले पुरुष से कोई पूछे कि 'आप यह क्या कर रहे हैं ?' उसके उत्तर में वह कहे कि 'मैं रोटी बना रहा हूँ।' चूँकि उस समय वह रोटी नहीं बना रहा था, तथापि नैगमनय उसके उस उत्तर को सत्यार्थ मानता है ।
(मोक्षाशास्त्र, अध्याय 1, सूत्र 33 की टीका, अनुवादक पं. पन्नालालजी)
(3) दो पदार्थों में से एक को गौण और दूसरे को मुख्य करके भेद अथवा अभेद को विषय करनेवाला (जाननेवाला)