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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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प्रश्न 31 - व्यवहारनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - किसी निमित्त के कारण से एक पदार्थ को दूसरे पदार्थरूप जाननेवाले ज्ञान को व्यवहारनय कहते हैं। जैसे कि - मिट्टी के घड़े को घी रहने के निमित्त से घी का घड़ा कहना।
(जैन सिद्धान्त प्रवेशिका) प्रश्न 32 - निश्चयनय के कितने भेद हैं ?
उत्तर - दो भेद हैं - (1) द्रव्यार्थिकनय और (2) पर्यायार्थिकनय।
प्रश्न 33 - द्रव्यार्थिकनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - जो द्रव्य-पर्यायस्वरूप वस्तु में द्रव्य का मुख्यरूप से अनुभव कराये, अर्थात् सामान्य को ग्रहण करे, उसे द्रव्यार्थिकनय कहते हैं।
प्रश्न 34 - पर्यायार्थिकनय किसे कहते हैं?
उत्तर - जो मुख्यरूप से विशेष को - गुण अथवा पर्याय को विषय बनाये, उसे पर्यायर्थिकनय कहते हैं।
प्रत्येक द्रव्य सामान्य-विशेषात्मक है। उन दोनों (सामान्य और विशेष) को जाननेवाले द्रव्यार्थिक तथा पर्यायार्थिकनयरूपी दो ज्ञानचक्षु हैं। 'द्रव्यार्थिकनयरूपी एक चक्षु से देखने पर द्रव्य सामान्य ही दिखाई देता है, इसलिए द्रव्य अनन्य अर्थात् ज्यों का त्यों भासित होता है; और पर्यायार्थिकनयरूपी दूसरे (एक) चक्षु से देखने पर द्रव्य के पर्यायरूपी विशेष ज्ञात होते हैं, इसलिए द्रव्य अन्य-अन्य भासित होता है। दोनों नयोंरूपी दोनों चक्षुओं से देखने