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प्रकरण आठवाँ
| नय । प्रश्न 28 - नय किसे कहते हैं ?
उत्तर - (1) वस्तु के एकदेश (भाग) को जाननेवाले ज्ञान को नय कहते हैं।
(जैन सिद्धान्त प्रवेशिका) (2) प्रमाण द्वारा ग्रहण किये गये पदार्थ के एक धर्म का जो मुख्यता से अनुभव कराता है, वह नय है।
(पुरुषार्थसिद्धयुपाय, गाथा 31 की टीका) (3) प्रमाण द्वारा निश्चित हुई अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक-एक अङ्ग का ज्ञान मुख्यरूप से कराये, वह नय है । वस्तुओं के अनन्त धर्म हैं, इसलिए उनके अवयव अनन्त तक हो सकते हैं, और इसलिए अवयव के ज्ञानरूप नय भी अनन्त तक हो सकते हैं।
5. श्रुतप्रमाण के विकल्प, भेद या अंश को नय कहा जाता है। श्रुतज्ञान में ही नयरूप अंश होते हैं। जो नय है, वह प्रमाणसापेक्षरूप होता है। (मति, अवधि या मन:पयर्यज्ञान में नय के भेद नहीं होते।)
(मोक्षशास्त्र, अध्याय 1, सूत्र 6 की टीका) प्रश्न 29 - नय के कितने प्रकार हैं? । उत्तर- दो प्रकार हैं - (1) निश्चयनय और (2) व्यवहारनय। प्रश्न 30 - निश्चयनय किसे कहते हैं ?
उत्तर - वस्तु के किसी असली (मूल) अंश को ग्रहण करनेवाले ज्ञान को निश्चयनय कहते हैं; जैसे कि मिट्टी के घड़े को मिट्टी का घड़ा कहना।
(जैन सिद्धान्त प्रवेशिका)