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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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अथवा आगम-अनुमानादिक द्वारा जो वस्तु (स्वरूप) जानी गई, उसे याद रखकर उसमें (अपने) परिणामों को मग्न करता है, इसलिए उसे स्मृति कहते हैं।
– इत्यादि प्रकार से स्वानुभव में परोक्ष प्रमाण द्वारा ही आत्मा को जानना होता है....
...अनुभव में आत्मा प्रत्यक्ष की भाँति यथार्थ प्रतिभासित होता है; इस न्याय से आत्मा का भी प्रत्यक्ष जानना (ज्ञान) होता है - ऐसा कहें तो दोष नहीं है....]
(मोक्षमार्गप्रकाशक; टोडरमलजी की रहस्यपूर्ण चिट्ठी, पृष्ठ 346-347) प्रश्न 24 - व्याप्ति किसे कहते हैं ? उत्तर - अविनाभाव सम्बन्ध को व्याप्ति कहते हैं। प्रश्न 25 - अविनाभाव सम्बन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर - जहाँ-जहाँ साधन (हेतु) हो, वहाँ-वहाँ साध्य का होना, और जहाँ-जहाँ साध्य न हो, वहाँ-वहाँ साधन का भी न होना, उसे अविनाभाव सम्बन्ध कहते हैं; जैसे कि जहाँ-जहाँ स्वात्मदृष्टि है, वहाँ-वहाँ धर्म होता है और जहाँ-जहाँ धर्म नहीं है, वहाँ-वहाँ स्वात्मदृष्टि भी नहीं है।
प्रश्न 26 - साधन किसे कहते हैं?
उत्तर - जो साध्य के बिना न हो, उसे साधन कहते हैं; जैसे कि धर्म का हेतु (साधन) स्वात्मदृष्टि।
प्रश्न 27 - साध्य किसे कहते हैं? उत्तर - इष्ट अबाधित असिद्ध को साध्य कहते हैं।