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प्रकरण सातवाँ
अपना मानते हैं, परभावों में ममत्व नहीं करते, किसी को इष्टअनिष्ट मानकर उसमें राग-द्वेष नहीं करते; हिंसादिरूप अशुभोपयोग का तो जिन्होंने अस्तित्व ही मिटा दिया है, जो अनेक बार सातवें गुणस्थान के निर्विकल्प आनन्द में लीन होते हैं, जब वे छट्ठे गुणस्थान में आते हैं, तब उन्हें 28 मूलगुणों का अखण्ड पालन करने का शुभविकल्प आता है - ऐसे ही जैन मुनि (गुरु) होते हैं।
धर्म का स्वरूप
निज आत्मा की अहिंसा को धर्म कहते हैं ।
प्रश्न 13 - श्री अरिहन्त के 46 गुण किस प्रकार हैं ?
उत्तर - उनमें 4 अभ्यन्तर और 42 बाह्य गुण - इस प्रकार कुल 46 गुण होते हैं।
प्रश्न 14 - चार अभ्यन्तर गुण कौन से हैं?
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उत्तर अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य - यह चार अभ्यन्तर गुण हैं ।
प्रश्न 15-42 बाह्य गुण कौन से हैं?
उत्तर - 34 अतिशय और 8 प्रातिहार्य - यह 42 बाह्य गुण हैं । प्रश्न 16 - 34 अतिशय कौन से हैं?
उत्तर - (अ) दस अतिशय जन्म से होते हैं -
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(1) मल-मूत्र का अभाव, (2) प्रस्वेद का अभाव, (3) श्वेतरक्त, (4) समचतुरश्र संस्थान, (5) वज्रवृषभनाराच संहनन, (6) अद्भुतरूप, (7) अतिसुगन्धित शरीर, (8) एक हजार आठ उत्तम लक्षण, (9) अतुल बल, और (10) प्रियवचन |