________________
290
प्रकरण सातवाँ
उत्तर - श्री अरिहन्त और सिद्ध परमेष्ठी देव हैं और भावलिङ्गी दिगम्बर मुनि-आचार्य, उपाध्याय तथा साधु वे गुरु हैं।
श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने नियमसार में देव-गुरु का स्वरूप निम्नानुसार कहा है -
श्री अरिहन्त का स्वरूप - घणघाइकम्मरहिया केवलणाणाइपरमगुणसहिया। चोत्तिसअदिसयजुत्ता अरिहंता एरिसा होंति॥
'घनघाति कर्मरहित, केवलज्ञानादि परम गुणों सहित तथा चौतीस अतिशय संयुक्त - ऐसे अरिहन्त होते हैं।' (गाथा 71)
[बाह्य-आभ्यन्तर सर्व मिलकर श्री अरिहन्तदेव के 46 गुण होते हैं। श्री अरिहन्त और सिद्ध भगवान को दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग एक साथ होते हैं; क्रमश: नहीं होते।]
श्री सिद्ध का स्वरूप - णट्ठट्ठकम्मबंधा अट्ठमहागुणसमण्णिया परमा। लोयग्गठिदा णिच्चा सिद्धा ते एरिसा होंति॥
आठ कर्मों के बन्धन को जिन्होंने नष्ट किया है ऐसे, अष्ट महागुणों सहित, परम, लोकाग्र में स्थित और नित्य - ऐसे वे सिद्ध होते हैं।
(गाथा 72) [सिद्ध भगवान में व्यवहार से आठ गुण और निश्चय से अनन्त गुण हैं।]
श्री आचार्य का स्वरूप - पंचाचारसमग्गा पंचिंदियदंतिदप्पणिद्दलणा। धीरा गुणगंभीरा आयरिया एरिसा होंति॥